Thursday, October 29, 2009

पगली लड़की

अमावास की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है ,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसूं के संग होते हैं,
जब पिछवाडे के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घडियां टिक -टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
जब उंच- नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती हैं,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है ।

जब पोथे खली होते हैं, जब हर सवाली होते हैं,
जब ग़ज़लें रास नहीं आतीं, अफसाने गाली होते हैं ।
जब बासी फीकी धुप समेटें दिन जल्दी ढल जाता है
,जब सूरज का लास्खर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है ,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मना करने पर भी पारो पढने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज सुनाई देती है,
जब दर्पण में आँखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बडकी भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिनभर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते हैं, हम जाते हैं, घबराते हैं ,
जब साडी पहने एक लड़की का एक फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मानती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है।

दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जज्बात नहीं,
वोह पगली लड़की 9 दिन मेरे लिए भूखी रहती है,
छुप - छुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी न कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन में हूँ मजबूर बहुत, अम्मा - बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ अधिकार नहीं बाबा,
यह कथा - कहानी किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के भीं मरना भी भारी लगता है,

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