Wednesday, September 30, 2009

वक्त गुज़र जाता है

वो यारो की महफिल,
वो मुस्कुराते पल,
दिल से जुदा है अपना बिता हुआ कल
कभी ज़िन्दगी गुज्जरती थी वक्त बिताने में,
आज वक्त गुज़र जाता है चनद कागज के नोट कमाने में......
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कोई है जो दुआ करता है,
अपनों में हमे भी गिना करता है,
बहुत खुशनसीब समझते है ख़ुद को,
दूर रह कर भी कोई याद किया करता है...
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क्यो हमे किसीकी तलाश होती है,
दिलको किसीकी आश होती है चाँद को देखो,
व्हो भी तनहा है,
जबकि उसकी चांदनी से रोज मुलाकात होती है
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कांच को चाहत थी पत्थर पाने की,
एक पल में फ़िर टूट कर बिखेर जाने की,
चाहत बस इतनी थी उस दीवाने की,
अपने हजार टुकडो में उसकी हजार तस्वीर सजाने की।

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