मैं किसी और का हूँ इतना बता कर रोये
वो मुझे मेहँदी लगे हाथ दिखा कर रोये
मुझे अंजाम ऐ मोहब्बत नही मालूम हरगिज़
ये कहा और मुझे सीने से लगा कर रोये
जो मुझे ज़ब्त की तलकीन किया करता था
वो जमाने को मेरा हाल सुना कर रोया
आंसू बन कर निकल न जाऊँ कहीं, इस डर से
अपने अश्कों को वो आंखों में छुपा कर रोया
वस्ल का आखरी लम्हा जो मुयस्सर था हमें
उसी लम्हे में वो सदियों को समां कर रोया......
Friday, August 21, 2009
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